लौंडे तो यूँ बदनाम हैं….

वाकया थोड़ा पुराना है जनवरी की  कोई ठण्डी सी शाम होगी ब्ब्डू से क्लास करके लौट रहा था..जाड़ा अपने पूरे शबाब पर जहाँ तहाँ लोग अपने दांत को तीव्र लय में किटकीटाकर अलाव ताप रहे थे…

गुरु जी क्लास में हमको अलग से  डांट दिए थे.  “तुम्हारे बस का मस्स्कोम नहीं छोड़ दो बेटा” सो ठण्डी के मौसम में गर्मी का एहसास हो रहा था..मल्लब कि मिजाज झन्ना कर  आड इवेन और दिल दिल्ली हो गया था..

सोचा की चलो अब घर पर चला जाय वहीँ चलकर रोया जाएगा

लेकिन संयोग से उस दिन मुझे कुछ काम से हज़रतगंज  जाना था मटियारी से ऑटो पकड़ा और कान में कनखजूरा को खोंसकर आँख बन्द कर लिया

 

तब तक एक मेरी ही तरह क्लास करके लौट रही लड़की मेरे पास आकर बैठ गयी…

और लड़की के ठीक 2 मिनट बाद एक अंकल जी आये और पान घुलाते हुए बैठ गए..

लड़की बीच में अंकल जी और हम उसके अगल बगल…ऑटो वाले ने  किक मारी दो चार दूसरे ऑटो वालों को अच्छी अच्छी गालियां दी, रेड ऍफ़ एम आन किया और चल दिया..

अम्बेडकर आते आते लड़की ने ऑटो  रुकवा दी और मुझसे कहा “भइया क्या आप बीच में आएंगे…”?

हमने कहा “जी जरूर”….हम बीच में आ गए..अब अंकल जी कभी मुझे घूरें कभी लड़की को… मुझे कुछ माजरा समझ में न आया अचानक अंकल जी दूकइसा मुंह बनाकर गंज के आते आते उतर गए…

उनके उतरने के कुछ देर बाद  लड़की भी जंग उतर गयी  और  कुछ ही देर में हम हज़रतगंज  चौराहा आ गए….ऑटो वाले ने सौ का चेंज देते हुए मुझसे कहा..”जानते हैं भइया?.. ये चचा जी उस लड़की के कमर में हाथ लगा रहे थे…”

मैंने कई बार पूछा “क्या सच में.”…? उसने कहा “भइया मैं मिरर में देख रहा था”…मैंने पूछा..”बोले क्यों नहीं…वो कहा “लड़की बेचारी कुछ नहीं कह रही तो हम क्या करें..वो चुप चाप जगह बदल लेना उचित समझी..तो हम भी चुप चाप रहना उचित समझे..”

मैं तो शान्त हो गया एकदम से.…ऐसा कभी सोचा भी नहीं…अरे सड़क छाप लौंडे ही  इस तरह का काम करतें हैं…लेकिन उस शबमानव से दिखने वाले  अंकल जी की बेटी अगर होगी तो भी इस बेचारी से बड़ी ही होगी…. और वो… यकीन नहीं हो रहा था….

तभी ऑटो वालों ने धीरे से कहा “ये रोज का किस्सा है भइया..बूढ़े भी कम नहीं…लौंडे तो बदनाम हैं हीं…यही समझिये कि बस दो चार ही लड़कियां विरोध में थप्पड़ जड़ देती हैं,वरना अधिकतर इनकी उम्र देखकर जगह  बदल लेना ही उचित समझती हैं….”

तबसे इस तरह की कई घटनाएं सुन,देख,पढ़ चूका हूँ….ट्रेन,बस,ऑटो  से लेकर फेसबुक whtas app हर जगह हो रहा….कुछ लौंडे तो यही करने के लिए पैदा हुए हैं…..सड़कों पर क्रान्ति करेंगे..दामिनी की याद में मोमबत्ती जलाएंगे..और अगले दिन ग्रैंड मस्ती को हीट कर देंगे….उसके अगले दिन किसी कालेज से घर आ रही लड़की के अन्तः वस्त्रों की साइज बताकर ताली बजायेंगे….

फेसबुक पर आप हर लड़की के इनबॉक्स में देख लें इनके  दैहिक प्रेम निवेदन से  भरे मैसेज पड़े हुए हैं.. सोशल साइट पर हर लड़की और महिला इनके आतंक से आतंकित है….

बस क्या कहें…क्योंकि हम भी उसी उमर हैं….कोई साधू सन्त नहीं.न ही स्त्री और काम का ख्याल मन नहीं आता..ये तो स्वभाविक सी चीज है…विवेक का अंकुश नहीं तो फिर आदमी कब जानवर हो जाय पता न चले…सो मुझे इन विवेक हीन लौंडो की परेशानी समझ में आती है की इनको टेस्टोस्ट्रान का कीड़ा परेशान कर रहा….और उसका क्या करें समझ नहीं पा रहे।

लेकिन.  शबमानव से दिखने वाले कई अंकल जी और बुद्धिजीवी जैसे बोलने वाले  कई दादा जी लोग जिनके बीबी,बच्चे,बेटा,बेटी सब कुछ हैं.. वो इस तरह कि छिछोरी हरकत करें..किसी लड़की को इनबॉक्स में परेशान करें…बस  ट्रेन आफिस में छेड़ दें तो कई बार सोचना  पड़ता है…..

ये जानते हुए कि यही बेचारे अपनी बेटी पोती को ठीक से दुपट्टा न लगाने पर एक  घण्टा प्रवचन की घुट्टी पिलातें हैं…

यही स्त्री विमर्श  बलात्कार पर  लम्बे लेख और कविता लिखेंगे…लेकिन दूसरे के बेटी बहन पोती को देखकर उन पर कामदेव सवार हो जातें हैं….. सारा विमर्श और कविता तेल लेने चला जाता है….

इनकी  कथनी और करनी में घोर अंतर है…

बलात्कार रोकने का वो कानून तो पास हो गया जिसमे अब सोलह साल वाले भी सजा पा जायेंगे…

लेकिन ये सोलह नहीं लूकिंग शबमानव साठ साल वाले अंकल और दादा जी लोग जो देश के हर कोने में,  सोशल मिडिया में हर घण्टे   बलात्कार कर रहे इनकी सजा कैसे होगी?

पता नहीं….

बस यूँ समझिये की केजरी सर की कसम  आज किसी ने कहा की उनके  आड इवेन के चक्कर में ऑटो मेट्रो बस में लड़कियों को बहुत दिक्कत हो रहा…..

प्रदूषण तो कम नहीं हुआ लेकिन कुछ लोगों में  मानसिक प्रदूषण  बहुत बढ़ गया है।

बस ये वाकया याद आ गया।

बागवान  लौंडों ,खूसट बुड्ढों और केजरी सर को बुद्धि दे।

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4G वाली लड़की….

तुमको पता है. तुम्हारी अरहर कि दाल जैसी आँखों की कसम आज लौंडे तुम्हारे प्यार में टेलीनार का 2g हुए जा रहें हैं.
आह. इस ‘नव कंज लोचन कंज मुख’ की आभा  के आगे भक्तिकाल के सारे कवि रीतिकाल जैसा फील कर रहें हैं…
तुम पता नहीं ग़ालिब की ग़ज़ल हो या खैय्याम की रुबाई, फैज़ की नज़्म हो या गुलज़ार के गीत…लेकिन तुम्हारे उलझे उलझे बिखरे बिखरे बालों को देखकर मेरे मुहल्ले का दुर्गेश कहता है की तुमने जरूर कोई मुस्कराने का   शार्ट टर्म  कोर्स किया हुआ है.
तभी तो तुमको टीवी पर देखते ही लगता है कि देश दुनिया में कोई समस्या ही नही है…सब सही हो गया है …रुस ने आईएस को तबाह कर दिया है…सीरिया में दीपावली मन रही है….पाकिस्तान ने आईएसआई और लश्कर ए तैयबा के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया है..बराक ओबामा मोदी जी के सर में हिमगंगे तेल लगा रहे हैं. सेंसेक्स भी ठीक ठाक  है…महंगाई की नानी मर गयी है. दाल 10 रुपया में 5 किलो मिल रही है. बीस रुपया में 5GB 3Gडाटा तुम्हारा एयरटेल दे रहा है. राहुल गांधी के  बुद्धि का विकास अपने उच्चतम स्तर से आगे बढ़ गया है..धरती पुत्र मन से मुलायम सिंग और राष्ट्र माता सोनिया गांधी जी के भाषण को कोई भी आसानी से समझ  सकता है…
मनमोहन सिंग भी अब पंचम स्वर में बोलने लगे हैं….राष्ट्रिय जीजा सीरी वाड्रा जी के खेतो में पुदीने की फसल लहलहा रही है. बहुत क्रांतिकारी वाले अपने केजरीवाल  सर अब रोज रात को एक फ़िल्म देखकर awesome awesome का ट्वीट करने लगें हैं…
रेप सिंगर सीरी हनी सिंग अब ध्रुपद सिखने में तल्लीन हो गये हैं…
मल्लब लगता है कि  देश दुनिया की सारी समस्याएं तुम्हारे इस हसीन  4G की स्पीड से  ठीक ठाक हो गयीं हैं….
तुम जानती हो ये इश्क का असर है पगली. सब इश्क में पागल हुए जा रहें हैं….
एक जमाने में 1G वाला  इश्क था .”कबूतर जा जा” वाला गाना सुनकर दीवाना  चिट्ठी लिखता था   अपनी महबूबा को और जबाब आते आते महबूबा के हाथ पीले और महबूब के नेत्र गीले हो जाते थे…
फिर जमाना बदला.. 2Gइश्क आया..मने भइया के बियाह में घाघरा वाली साली को देखकर किसी देवर का दिल तीव्र लय में धड़का ..”भइया की सालियों” वाले गाने पर नाचते हुए फोन नम्बर का जुगाड़ कर रहे   लौंडे की ठुकाई भी हो गयी…बाद में लड़की ने  दुपट्टा ठीक करते हुए जबाब दे दिया.”मैं उसमें की नहीं हूँ”
ओह..लौंडा बेचारा बीएसएनएल के लैंडलाइन जैसा मुंह बनाकर पढ़ाई से मित्रता कर लिया और आगे चलकर उत्तर प्रदेश में शिक्षा मित्र बना।
जमाना फास्ट हुआ अब 3G इश्क अपने चरम पर है…इस इश्क में सामने वाली हर लड़की  हर लड़के को महबूबा ही नज़र आती है..
अपनी तीसरी गर्लफ्रेंड के चौथे ब्वायफ़्रेंड लौंडे “ये पार्टी यूँ ही चलेगी” और “ब्रेक अप की पार्टी कर ली” जैसे गाने के साथ महबूबा से रोज रोज इश्क और रोज रोज ब्रेकअप  करते हैं…
अब जबकि तुम 4G लेकर आ गयी हो तो सुन लो..अब उसी स्पीड से इश्क डाउनलोड होगा और रोज डिलीट होगा….।
लेकिन अपने इस 4G से पहले उन दिवानों का जरा ख्याल तो करो. जिनके सपने में तुम रोज आकर चली जाती हो. वो आजकल हनुमान चालीसा का पाठ करना छोड़ “कुण्डी मत खड़कावो राजा सीधा अंदर आवो राजा” की सन्दर्भ सहित व्याख्या करने लगें हैं…..
उन कुंवारों का हाल ए दिल तुम क्या जानो जो सोचते हैं काश कोई तुम्हारी तरह 4G गर्लफ्रेंड होती।
अरे तुम्हें तुम्हारे सुनील भारती की कसम जरा एयरटेल को समझावो…ये दीवाने आज भी महबूबा की तलाश में बाबूजी के जेब से 2G चलाते हैं…4G इनके लिए तुम्हारी तरह ही सपना है…महबूबा ऑनलाइन आती है तो इनके नेट की स्पीड इन्हें ऑफ़लाइन कर देती है…फिर चार दिन महबूबा से  लैंडलाइन झगड़ा चलता है..
जिन लौंडों ने अपनी दुल्हन खोजने के लिए ही फेसबुक अकाउंट बना रखा है…उनका तो ख्याल करो…बेचारे सतहत्तर किसिम का मुंह बनाकर सेल्फ़ी लेतें हैं और अपलोड होने में ही सताइस मिनट लग जातें हैं…
साठ साल वाले दादा जी  तीस साला अपनी महिला मित्र के रूप लावण्य का इनबाक्सीय बखान कर ही रहे होतें हैं तब तक उनका टावर जबाब दे जाता है….
दुःख की इंतेहा नहीं है…
ये मीठे मीठे महंगे सपने दिखाकर भोले भाले लौंडो को भरमाना बन्द करो….अगर तुम्हारा 2G सही नहीं हुआ तो तुम्हारा 4G वापस।

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मेला ऑनलाइन…..

आज प्यार भले  फेसबुक से पैदा होकर whtas app पर जवान हो जाय…

लेकिन किसी जमाने में कालेज के सामने वाली चाट की दूकान से शुरू होकर  दशहरा के मेला वाली जलेबी की दुकान पर ही मंजिल पाता था।. ।शायद प्यार की मंजिल पाने वालों के साथ ट्रेजडी थी..प्यार के साथ टेक्नोलॉजी का गठबंधन न हुआ था….लाइक कमेंट शेयर जैसे शब्दों की मौजूदगी  का एहसास इतना व्यापक न था..

तभी तो कभी गजोधर अपनी पिंकी को खत लिखता..

“सुनो पिंकी..दुर्गा जी के मेला में आवोगी न गोरखपुर ?..पिंकी भी चोन्हाकर जबाब दे देती”हाँ आएंगे..आएंगे क्यों नहीं..बाकी मेला में  पीछे पीछे मत घूमना उल्लू की तरह..कुछ समझ में आता है कि गोलघर से ही पीछे पड़ जाते हो  स्टेशन तक घूमते रहते हो पागलों की तरह मेरी बुआ आ मौसी जान गई न तो मेरी इज्जत का ईंधन जल जाएगा.

अब लिजिये उस बकत गजोधर के दिल में तबला और सितार की मीठी मीठी युगलबंदी होने लगती…मन में लड्डू नहीं  रसगुल्ले फूटने लगते..”आह पांच महीना बाद तो पिंकी को देखेगा”..उहे इंटर के इम्तेहान में गांधी इंटर कालेज में नकल करवाने गया था…इस बार तो सज संवरकर मेला में आएगी..ओह..कितनी अच्छी लगेगी न…?

ऊँगली पर दिन गिनते गिनते  इंतजार की घड़ी समाप्त होती थी।

अब एक साल बाद मेला आ गया.. दुर्गा जी के पंडाल सज गए…बड़े बड़े लाउडस्पीकर से “चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है” बजने लगा…

झूले ,ठेले,खोमचे से लेकर चरखी आ चौमिंग डोसा,छोला से लेकर गुरही जिलेबी तक की दुकाने सज गयीं… बच्चे घर वालों से पईसा के लिए झगड़ा करने लगे…लीलावती,कलावती भी मेला से चूड़ी आ नेल पालिस खरीदने के लिए बेचैन हो गयीं…कई सिंटूआ आ मंटुआ त  चुराकर घर का गेंहू तक बेच दिए…

आगे पता चला पिंकी नेहवा आ मिनीया मिंटीया के संग मेला देखने आ गयीं..उधर लीलावती की सखी संगीता पाँच साल बाद मेला में अचानक भेंटा गयी..ससुरा जाने के बाद केतना मोटा गयी है संगीता..लीलावती देखकर अपनी बचपन की सखी को  खूब हंसती आ ताना भी देती…”बहुत ज्यादे प्यार करते है का रे जीजाजी ?”…मने  दू घण्टा खूब बातकही होता..

गजोधर भी अपनी प्यारी प्यारी पिंकी के पीछे पीछे पागलों की तरह घूमता ।

इसी बीच  पिंकी को छोला खाने का मन  हुआ….वो खाने भी लगी…

पता चला वो अभी खा ही रही है तब तक गजोधर भाई का परेम फफाकर पसरने लगा.. वो दुकानदार के पास गए आ ताव देकर कहा…”सुनो हउ जो हरियर दुपट्टा वाली है न..उससे पैसा मत लेना…”

दुकानदार भी समझ गया कि  इ लभेरिया के मरीज हैं सब…लोड लेना ठीक नहीं।”

लेकिन साहेब अब समय बदला है…

अब भी पंडाल सजे हैं…अब भी लोग बाग़ आ रहें हैं…भीड़ कम न हुई है…

आस्था और टेक्नोलॉजी का अद्भुत संगम दिख रहा है. भक्ति ऑनलाइन हो चुकी है…

“चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है” कि जगह “आज माता का मुझे ईमेल आया है” बजने लगा है…..

और कई पिंकीयों  ने अपने अपने  गजोधरओं  से whats app पर कह दिया है..”बक…हम मेला में नहीं जायेंगे…बहुत डस्ट उड़ता है..अभी सात सौ लगाके फेशियल करवाएं हैं.. और तो और बहुत इरिटेशन हो रहा आजकल मुझे क्राउड से…छोडो ये सब बकवास मेला..फ्राइडे को  मॉल में ‘फिल्म’ देखतें हैं…मैंने बुक माय शो पर टिकट भी ले लिया…”

अब आप क्या किजियेगा..कपार पिटियेगा..

ये पिंकी आ गजोधर का दोष दिजियेगा..अरे ये उनका दोष नहीं….. ये ऑनलाइन समय का दोष है…घर बैठे मैकडोनाल्ड से बर्गर आ पिज़्ज़ा हट से पिज़्ज़ा माँगने वाली  और एमेजॉन,फ्लिपकार्ट और स्नैपडील पर खरीदारी करने वाली पीढ़ी को अब ये मेले ठेले छोले जलेबी रास नहीं आ रहे…

वो नहीं जानते की  ये मेले सिर्फ सामानों की खरीदारी करने के लिए नहीं हैं….

ये तो हमारी परम्परा में बसी उत्सवधर्मिता के प्रतीक हैं….ये हर महीने आने वाले त्यौहार बताते हैं कि जिंदगी रंज ओ गम से ज्यादा जश्न है….आदमी यहाँ आकर रिचार्ज होता है…

अरे मेले के ठेले वाली जलेबी का स्वाद मैकडोनाल्ड और पिज्जा हट वाले कभी दे पायेंगे क्या? न ही  whtas app और फेसबुक पर गजोधर को वो  प्यार में रोमांच आएगा जो मेले में महबूबा के पीछे पीछे  घूमने में आता था…

आदमी भूल रहा शायद की घर बैठे ऑनलाइन सब कुछ मिल सकता है लेकिन बहुत कुछ नहीं मिल सकता.. वहां सामान ही मिल सकता है..मेला नहीं..पिज्जा मिल सकता है इमोशन नहीं….

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हमदर्द बनना चाहिये

एक Couple  को शादी के 11 साल बाद एक लड़का हुआ. वे बहोत ही प्रेमी Couple थे और उनका लड़का उनकी आखो का तारा था.
एक सुबह, जब वह लड़का तक़रीबन 2 साल का था, पति ने (लड़के के पिता) एक दवाई की बोतल खुली देखि. उसे काम पर जाने के लिए देरी हो रही थी इसलिए उसने अपनी पत्नी से उस बोतल को ढक्कन लगाने और अलमारी में रखने कहा. लड़के की मम्मी रसोईघर में तल्लिन थी, वो ये बात पूरी तरह से भूल गयी थी.
लड़के ने वो बोतल देखि और खेलने के इरादे से उस बोतल की ओर गया, बोतल के कलर ने उसे मोह लिया था इसलिए उसने उसमे की दवाई पूरी पी ली थी. उस दवाई की छोटे बच्चो को छोटी सी मात्रा भी जहरीली हो सकती थी.
जब वह लड़का निचे गिरा, तब उसकी मम्मी उसे जल्द से जल्द दवाखाने ले गयी जहा उसकी मौत हो गयी. उसकी मम्मी पूरी तरह से हैरान हो गयी थी, वह भयभीत हो गयी थी, के कैसे वो अब अपने पति का सामना करेंगी?
जब लड़के के परेशान पिता दवाखाने में आये तो उन्होंने अपने बेटे को मृत पाया और अपनी पत्नी और देखते हुए सिर्फ चार शब्द कहे.
आपको क्या लगता है कोनसे होंगे वो चार शब्द?

पति ने सिर्फ इतना ही कहा- “ I Love You”.

उसके पति का अनअपेक्षित व्यवहार आश्चर्यचकित करने वाला था. उसका लड़का मर चूका था. वो उसे कभी वापिस नहीं ला सकता था. और वो उसकी पत्नी में भी कोई कसूर नहीं ढूंड सकता था. इसके अलावा, आगे उसने खुद ने वह बोतल उठाके बाजू में रख दी होती तो आज उसके साथ यह सब न होता.
वो किसी पर भी आरोप नहीं लगा सकता था. उसकी पत्नी ने भी उनका एकलौता बेटा खो दिया था. उस समय उसे सिर्फ अपने पति से सहानुभूति और दिलासा चाहिये थी. और यही उसके पति ने उस समय उसे दिया.

कभी-कभी हम इसी में समय व्यर्थ कर देते है की परिस्थिती के लिए कोण जिम्मेदार है या कोण आरोपी है, ये सब हमारे आपसी रिश्तो में होता है, जहा जॉब करते है वहा या जिन लोगो को हम जानते है उस सभी के साथ होता है, और परिस्थिती के आवेश में आकर हम अपने रिश्तो को भूल जाते है और एक दुसरे का सहारा बनने के बजाये एक दुसरे पर आरोप लगाते है. कुछ भी हो जाये, हम उस व्यक्ति को कभी भी नहीं भूल सकते जिसे हम प्रेम करते है, इसीलिए जीवन में जो आसान है उसे प्रेम करो. आपके पास अभी जो है उसे जमा करो. और अपनी तकलीफों को विचार कर-कर के बढ़ाने के बजाये उन्हें भूल जाओ. उन सभी चीजो का सामना करो जो आपको अभी मुश्किल लगती है या जिनसे आपको डर लगता है सामना करने के बाद आप देखोंगे के वो चीजे उतनी मुश्किल नहीं है जितना की आप पहले सोच रहे थे. हमें परिस्थिती को समझकर ही लोगो के साथ व्यवहार करना चाहिये, और लोगो कठिन परिस्थितियों में उनका हमदर्द बनना चाहिये.

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प्यार का मतलब

प्यार करना मतलब कुछ नहीं है, प्यार करने लायक बनना थोडा बहोत अच्छा है लेकिन प्यार करने और साथ में करने लायक बनना, ये सब कुछ है. प्यार को कभी किसी का दिया हुआ अनुदान समझकर स्वीकार ना करे.

बल्कि जिस से भी हम प्यार करते है, उस से बिना किसी शर्त के, बिना किसी लालच के बिना किसी द्वेषभावना के हमेशा दिल से प्यार करते रहना चाहिये. क्यूकी जब हम किसी को दिल से प्यार करते है तब हम सामने वाले के दिल में हमेशा के लिए बस जाते है. की जब दो लोगो के बिच प्यार होता है तब वह किसी दौलत का भूका नहीं होता, वह भूका होता है तो सिर्फ स्नेहभाव का. जिस से भी हम प्यार करते है उनसे हमेशा हमें प्यार से पेश आना चाहिये. एक दुसरे के लिए समय निकलते रहना चाहिये. तभी हम हमारे रिश्ते को सफलता से आगे बढ़ा पाएंगे.

प्यार से बोला गया आपका एक शब्द दो दिलो के बिच हो रहे बड़े से बड़े मनमुटाव को भी खत्म कर सकता है. प्रेमभाव से रहना कभी-कभी हमारे लिए भी फायदेमंद साबित होता है. क्यू की कई बार जो काम हजारो रुपये नहीं कर पाते वही प्यार से बोले गये हमारे दो शब्द काम आते है.

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नेहिया के डोर

 

लाख हनी सिंह का दौर हो पर गाँव में रहने
वाला लड़का आज भी दिल टूटने पर ‘ब्रेक अप की पार्टी रख ली’ नहीं सुनता ।..
आज भी अल्ताफ राजा उसके महबूब गायक
हैं..गाँव के बाहर पुल पर बैठे..
‘जा बेवफा जा तुझे प्यार नहीं करना’
बजाता है….उसकी आशिकी 1 से 2 नहीं होती
कि वो ‘तू
मेरी जिन्दगी है’ छोड़कर ‘सुन
रहा है न तू ‘ सुनें……
वो हमेशा आशिकी रहती है…..
उसके दिल पर लगी जख्म जब
भी हरीयर
होती है …वो अपने चाइनीज मोबाइल का फूल वाल्यूम फूल कर…पैर के साथ मुंह लटकाए ‘एक बेवफा के जख्मों पर मरहम लगाने हम गये ,मरहम की कसम…….बजाता है..और तब
तक सुनता है ..जब तक
कि उसकी मासूक एक बार ससुराल
रूपी गोंडा से लौटकर न आ जाए…और
किसी दिन इनार प मिलकर कहे…….”अले ले
ले बाबू ये देको देको कोन है”……”नमस्ते कलो…
कलो बेटा…. ये विमल मामू हैं ”
अब क्या …..बेचारा मुंह बनाकर पूछ्ता है….हमार त याद अब ना आवत होई….का हो पुष्पा?
फिर तो पुष्पा भी पल्लू सीधा कर पूछ ही देती है..काहें दुबरा गइल बाड़ा?
आगे क्या कहूँ इसको महसूस करने के लिए कलेजा चाहिए . सोचता हूँ गाँव में रहने वाले आशिक कितने सीधे साधे हैं न…?
आज भी….
शहरों के आशिक ऐसा करतें हैं क्या? आज तो वो पुष्पा के साथ रिंकी चिंकी और नेहा पर भी डोरे डालते हैं…एक से जी उब गया की दूसरी आयी नहीं की तीसरी से शुरू..उनका सारा लव हनी सिंह के रैप की स्पीड से मुकाबला करता है
पर गाँव में रहने वाले आशिकों ने आज भी थोडा सा कमिटमेंट बचा के रखा है..
भले वो  बलिया के किसी  गाँव में बैठकर बनारस की कल्पना होनूलूलू की तरह करतें हों तो क्या है…..
भले उनका फेसबुक व्हाट्स अप और लाइन वाइबर पर अकाउंट नहीं है तो क्या है…
उनके रिश्ते किसी लाइक और कमेन्ट और चैट की दुनिया से बहुत उपर हैं।
भले वो एंड्रायड विंडो और आईओएस के दौर में जावा और सिम्बियन पर टिकें हैं तो क्या है…उन्होंने आज भी चिट्ठी वाली आत्मीयता से रिश्तों की सदाकत को बचा के रखा है…
भले उन्होंने  गर्लफ्रेंड को  मैकडोनाल्ड की कुर्सी पर बैठे प्रपोज न कर गाँव के मेले में जलेबी की दुकान पर किया हो….
पर उनकी रिश्ते की मिठास किसी भी महंगी मिठाई को फींकी कर सकती है….
लेकिन हम कभी गाँव जाते हैं तो इनको देखकर लगता है .ये लोग अभी कितने पिछड़े हैं..और अपने विकसित होने पर मुग्ध होतें हैं..सोचतें हैं..ये क्या जाने मैकडोनाल्ड में पिज्जा खाते हुए फेसबुक पर फोटो शेयर करने का आनंद…..
और व्हाट्स अप के साथ साथ लाइन वाइबर वी चैट ,स्काइप चलाने का आनंद…
किसी वातानुकूलित थियेटर में कोल्ड्रिंक को स्ट्रा से खींचते हुए रोमांटिक फिल्म देखने का आनंद…
पर कुछ भी हो जाय उन्होंने ये सब न जानकर उस चीज को जरुर जान लिया है….जिसको जाने बिना कुछ भी जानना बेकार है…
वो है ‘आत्मीयता और संवेदना….जिसे आज की हमारी युवा पीढ़ी   आधुनिकता की अंधी दौड़ में धीरे धीरे  खोती जा रही है..
और मजे की बात ये भी है की हम इसे समझ भी नहीं पा रहें…रिश्तों में आई नैतिक गिरावट का सारा दोष समय और समाज में फैली गड़बड़ी पर थोपकर हम अपनी जिम्मेदारी से तो मुक्त हो लेतें हैं…पर ये नहीं सोचते की थोड़ा सा जागरूक होकर हम आज भी ‘आदमीयत को बचाए रख सकतें हैं।
अब एक दिन क्या हुआ कि  एक मित्र के दरवाजे पर बैठा था…बातचीत जारी थी..अचानक उन्होंने मोबाइल की तरफ ध्यान से देखा और सर उठाकर कहा  ‘पीयूष अब खाना खा लिया जाय” ..हमने कहा भाई बड़ा जल्दी भाभी जी ने खाना तैयार कर दिया….उन्होंने मोबाइल रखते हुए कहा
“हाँ अभी व्हाट्स अप पर मैसेज किया है आकर खा लो वरना हमारे सीरियल का टाइम हो रहा है
हमने कपार पीट लिया….सोच रहा था कितना अच्छा होता न की भाभी जी एक बार दरवाजे पर आकर धीरे से कह जातीं की ‘सुनतें हैं जी आकर खा लीजिये न..’ तो कसम से आधी भूख तो वैसे ही मीट जाती है…
पर उनका दोस नहीं…आज सारे रिश्ते टेक्नोलाजी के तार से बंधें हैं…नेह की डोर कहीं टूट सी गयी है….
हम दिन पर दिन आधुनिक और सुख सुविधा सम्पन्न होते जा रहें हैं. लेकिन ये कतई नहीं भूलना चाहिए की हम साथ साथ हम बहुत कुछ खोते भी जा रहें हैं….
बेशक समय के साथ कदम ताल मिलाना जरूरी है..पर थोड़ी सी गाँव का माटी वाली फिलिंग को बचाकर रखना भी जरूरी है….वरना आदमी से पत्थर होते देर न लगेगी।
आसमान को छूना भी जरूरी है..पर पैर को जमीन पर रखकर ,वरना हवा में लटकते देर न लगेगी….

 

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बौद्धिक बहस के बीच

इतिहास से अपना खानदानी मुकदमा चलता है बाबूजी से लेकर बाबा और बाबा से लेकर परबाबा तक इतिहास में भूगोल रहे हैं. लेकिन .मैंने अपनी खानदानी उपलब्धि से छेड़छाड़ करते  हुए इतिहास की किताबों से एक लम्बी लड़ाई लड़ी है. जो  मेरे खानदानी इतिहास में एक दिन जरूर दर्ज होगा. लड़ाई के दौरान जो दिव्य ज्ञान हुआ था वो ये था कि  हमारा   भारत कभी सोने कि क्यूट सी  चिड़िया  था. चिड़िया  चौबीस कैरेट के सोने से बनकर मस्ती में फूदकती थी. लेकिन पता न बेचारी को इस आर्यावर्ते जम्बूदीपे में कौन सा कष्ट हुआ कि  उड़ते उड़ते अमेरिका के साथ रूस चीन जापान जर्मनी तक चली गयी लेकिन लौटकर भारत आना मुनासिब न समझा. समय बिता और समय बदला. भारत सोने की चिड़िया से  कृषि प्रधान देश बन गया. खेती में क्रान्ति हुई. कृषि में  देश की आत्मनिर्भरता ओवर फ्लो होने लगी. भारत तेल के बदले अनाज का लेन देन करने लगा. सबके घर अनाज से भर गए. इसके बावजूद भी अनाज कि पैदावार  में लगातार   वृद्धि होती रही ।और एक दिन  भारत में अनाज रखने कि जगह तक न बची।लिहाजा अनाज खुले आम सड़ने लगे। जिसके दुःख में दुःखी होकर किसान बेचारे आत्महत्या करने लगे.

लेकिन. समय बेचारा समय का पक्का और परिवर्तन शील आदमी.एक बार फिर उसने करवट  बदलते हुए एक स्वीट सी अंगड़ाई लिया है.और भारत अब कृषि प्रधान से बुद्धिजीवी प्रधान देश बन गया है.

 

 

खेती में भयंकर  तरक्की के बाद अब देश में बौद्धिकता कि दमदार फसल लहलहा रही है.

इस खेती को देखने के बाद एक प्रचण्ड अर्थ शास्त्री टाइप बुद्धिजीवी ने एक सलाह दिया कि “भारत चाहे तो  दुनिया में छाने वाली आर्थिक मंदी का फायदा उठाकर दूसरे देशों को बुद्धिजीवी निर्यात कर सकता है और  अपनी आर्थिक स्थिति को जबरदस्त रूप से मजबूत कर सकता है. या ‘तेल के बदले अनाज योजना कि जगह ‘तेल के बदले बुद्धिजीवी’ योजना पर फोकस कर सकता है।

काहें कि बौद्धिकता के इस  मैन्युफेक्चरिंग हब को दुनिया के चिंटू पिंटू टाइप देश ललचाई निगाह से देख रहे हैं.”काश हमहू अइसा होते”.

जरा देखो तो भारत में जिधर नज़र घुमावों लोग विमर्श में व्यस्त हैं. बेहिसाब बहस. अकूत ज्ञान कथ्य तथ्य के  समंदर में ज्वार भाटा आया हुआ है.  क्रान्ति का दौर टीवी अखबार चाय कि दूकान नुक्कड़ से लेकर डायनिंग टेबल और फेसबुक टवीटर से लेकर whats app पर चल रहा है.

इन बुद्धिजीवी क्रांतिकारियों देखने  सुनने के बाद यकीन हो जाता है कि अब तो क्रांति  होकर रहेगी.बदलाव होकर रहेगा.देश दुनिया कि सारी समस्या का समाधान इन विमर्शों में घुस कर सो रहा है. भारत फिर सोने की चिड़िया बनकर उड़ने लगेगा. हिन्दुस्तान पाकिस्तान का झगड़ा मिट जाएगा. पाकिस्तान के बच्चे भारत में आकर गुल्ली डंडा कंचा खेलने लगेंगे. भारत से  बुजुर्ग लोग  दीर्घशंका समाधान और पतंग उड़ाने हेतु पाकिस्तान के खेतों का रुख करेंगे. सीरिया ईराक में अखण्ड हरिकीर्तन और माता रानी का जागरण  का आयोजन होगा. दुनिया के सारे आतंकवादी अपनी बम बंदूक का अँचार डालकर मानावाधिकार  की लड़ाई लड़ेंगे. आईएसआईएस  के सारे लड़ाके अहिंसा की सौगंध खाते हुये वाड्रा साहेब के खेतों में  पुदीने की  खेती किसानी के गुर सीखेंगे. महंगाई की नानी मर जायेगी.पूंजीवादी व्यवस्था के दिन लद जाएंगे.   भ्रष्टाचार के कमर में मोच आ जायेगी. सारे नौकरशाह और नेता ईमानदारी के जीते जागते एक मात्र सबूत होंगे. अब राम राज्य कायम हो जायेगा.

लेकिन. किसी दूसरे ग्रह से कोई आदमी हमारे देश  आये और  बुद्धिजीवियों के विमर्श सुनने के बाद जब आम लोगों से मिले तो माथा पीट लेगा. घोर निराश हो जायेगा जब जानेगा कि समाज का एक आम आदमी न इन बहसों को  सुनता,समझता,पढ़ता है न ही इनसे प्रभावित होता है.

उसे तो अपनी रोजी रोजगार की चिंता से फुर्सत नहीं. मिस्टर राकेश के लिए अभी आतंकवाद से ज्यादा अपने टाइम से आफिस जाने की चिंता है. मिसेज शर्मा को इस बात कि चिंता नही की सलमान छूट गया ये कोर्ट कौन चला रहा था. उनको तो इस बात कि चिंता सता रही कि इस महीने घर का खर्च कैसे चलेगा.

पप्पू हलुवाई को पता नहीं कि असहिष्णुता किस चिड़िया का नाम है उनको तो इसके शुद्ध उच्चारण सिखने में ही पन्द्रह दिन लग जायँगे.

रामसकल  को खेतों की चिंता है. आलू को कहीं पाला न मार जाए. खेदन मजदूर को भारत के जीडीपी बढ़ने से ख़ुशी नहीं उनको तो इस बात की ख़ुशी है कि नए साल में उनकी मजदूरी बदी है. किसी उमेसवा को पढ़ाई की और किसी सिंटूआ को इस बात की चिंता है की उसकी तीसरी प्रेमिका भी उससे शादी करने ले लिए तैयार होगी या नहीं.

लेकिन इन मिस्टर राकेश, मिसेज शर्मा, रामखेलावन से बेखबर बुद्धिजीवी बहस पर बहस किये जा रहे हैं. क्रान्ति पर क्रान्ति हो रही है. और बदलाव नामक शब्द बेचारा  विलुप्त हो गया है।

अरे कैसे बदलाव आएगा? जब बुद्धिजीवी को बदलाव से ज्यादा विमर्श की चिंता सताएगी. इन विमर्शों का असर  कैसे होगा जब एक बुद्धिजीवी बिसलेरी पीते हुए ‘जल समस्या’ पर भाषण देगा.

एसी में बैठकर “किसान की समस्या” पर सेमिनार करेगा.

पत्नी को बेवजह डांटते हुए “स्त्री विमर्श” पर लेख लिखेगा।

वो  खुद को सही किये बिना सब कुछ सही करना चाहेगा

बिना खुद को बदले  दुनिया बदलने की बातें करेगा। .बिना आत्मक्रांति किये  किसी क्रान्ति का कोई मोल नहीं. बिना खुद को बदले किसी को बदलने की कल्पना करना मूर्खता है।

ये क्रान्ति और विमर्श की सिर्फ बातें करना खाये पीये लोगों के बुद्धि के भोजन मात्र हैं. ये अगर ईमानदारी और सकारात्मक लक्ष्य को साधकर न किये गए तो  ये सिवाय बौद्धिक बिलास के कुछ नहीं हैं.

इन बातों से परिवर्तन तो दूर किसी गरीब के घर का चूल्हा नहीं जलेगा।

बाकी. जवन है तवन हइये है।

 

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समाजवादी नकल

टेक्नोलॉजी ने पाँव इस कदर फैला  लिये हैं कि नकलची अब हाईटेक किस्म के हो गये हैं. पहले विद्या की गाइड में मूड़ी डाल कर  खोजना पड़ता था. फिर फाड़कर समयानुसार छुपाकर लिखना पड़ता था. गणित बिज्ञान के  एग्जाम में कालेज कें कोई अध्यापक हल करते फिर उसका फ़ोटो स्टेट पचास पचास रुपया में बेचा जाता. लड़के के हाई स्कूल में तीन बार फेल होने के बाद जब चौथी बार तीलकहरु दरवाजे से लौटने लगते  तब  बेइज्ज़ती के डर से बाबूजी मामा नाना उसे पास कराने में जोर लगा देते.

मल्लब कि जब फोन सिर्फ लैंडलाइन हुआ करते थे स्मार्ट नहीं .उस जमाने में लइका कमरे में परीक्षा देता और लइका के बाबूजी ,चाचा ,पितीया खिड़की पर.
उ बैठ के चिल्लाता की “सातवां के तीन तबे से मांग रहे हैं. ना इनको  बिद्या में मिल रहल है  ना काका में. बाकी इ एहू साल हमके  फेल करवा के मानेंगे.

गजोधर नहाना खाना  भूल जाता पर पिंकिया को नकल कराना नहीं.
उधर रजुवा सुबह ही सुबह सज संवरकर  इमरान हाशमी बनके  लड़कियों वाले कमरे की खिड़की पर.
“का हो रीना जी आठवां का पांच हुआ?
तब  क्या करतीं रीना जी बेचारी उनके घर का कोई नहीं जो उनको नकल करवाये. दुपट्टा ठीक करते हुए नाक छूते  हुए  “ना” की मुद्रा में सिर हिला देतीं.
फिर तो लौंडा ना में हाँ को पढ़कर एक लहरिया कट लेता और आठवाँ का पांच खोजने इस मुद्रा में निकलता मानों कोलम्बस अमेरिका की खोज में गया हो.
खोज खाजकर लाता बाकी  देने से पहले अंखिया में अंखिया में डालकर जरूर कहता.
“पहिले इ बतावो की  सच्ची में पेयार करती हो हो  कि खाली अइसे ही देख देख हंसती  हो? तुमको पता है हम तीन दिन से सों नही  रहें हैं.  नीन नहीं लग रहा है. लग रहा है पियार में पागल होकर गुब्बारा बेचने लगेंगे.
बताइए न रीना जी हम इस पेयार के परीक्षा में कहिया पास होंगे?
ओह…अब रीना जी के मासूम से चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगतीं…बेचारी प्यार के इस दीर्घउत्तरीय प्रश्न को छोड़ देना ही उचित समझतीं.
और सर झुकाकर चुपके से नकल सामग्री ले लेती. लौंडा सनी देवल वाली फिलिंग लाकर  बांह मोड़ते हुये एक बार अपने रीना जी से पूछता.”अउर केवनो दिक्कत परसानी होगा तो बताइयेगा. अरे प्रिंसिपल मेरे मामा के सार हैं. डर कवना बात के.आ हउ तिवरीया मस्टरवा को. अरे जहिया परीक्षा खतम हुया ओहि  दिन उनकी तबील पर उनकर मुरझाइल पैना से क्लास लेंगे हम लोग.”
फिर रीना जी के मुरझाये चेहरे पर उम्मीदों का बल्ब जलता..वो भी कह ही देतीं.. “चार गो छूटत रहा है अभी”..
रीना जी को  फेल हो जाने का डर  सताता. फेल हो गए तो बियाह शादी में भारी  दिक्कत.।
इधर लौंडा चार के  चक्कर में नहीं प्यार के चक्कर में  चौदह कोस धांगकर उत्तर खोजता. ये अलग बात है की इंटर पास करने के  बाद रीना की शादी बीए फेल मुनीलाल से हो जाती। और राजु नामक  लौंडा इस प्यार के एग्जाम में फेल होकर पापा की जग़ह मामा बन जाता और विराट पर दूकान खोल लेता.
“रीना किराना मर्चेंट”
और दू साल बाद रीना चक्रवृद्धि ब्याज की तरह फैलकर अपने एक वर्षीय गोलु के साथ उस दूकान पर जॉनसन बेबी पाउडर खरीदने आ जातीं.
ये प्यार करने वालों के साथ सनातन से चली आ रही ट्रेजडी है।
पर दुःख होता है  एशिया के सबसे बड़े परीक्षा के हालात को देखकर. यहां नकल अब परम्परा का रूप ले चुका है. फ़ोटो स्टेट की जगह अब whats app ने लिया है.अकलेस भाई का नाव लेकर जूम करिये आ खूब लिखिये.आगे फारवर्ड करते रहिये.
प्रशासन के सारे दावे उपाय.जुमला साबित हो रहें हैं. पूर्वांचल के कुछ जिलों में कहीं  न कहीं गहरे अन्तरमन में ये बात घुस गयी है की नकल नही रुक सकता.
अब तो सुविधा शुल्क का जमाना आ गया.गार्जियन भी झंझट से मुक्ति के लिए स्कूल को दस पांच हजार दे देता है.नकल कराके पास करवाने की जिमेदारी स्कूल वालों की।
इधर समाजवाद के चार सालों में समाज का समाजवादी करण हुआ हो या न हुआ हो. अमीरी गरीबी झगड़ा झंझट खतम होकर लोहिया का सुराज आया हो या न आया हो लेकिन नकल का समाजवादीकरण जरूर हो गया है
कुछ भी कहना व्यर्थ है. उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद के आफिस में टँगे लोहिया जी और गांधी जी से पूरी सहानुभूति है मुझे।
समाजवाद नकल के रास्ते भी तो आ सकता है।
जय हो कहिये. वो शेर है न..

मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिफ है
क्या मेरे हक में फैसला देगा।

 

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हम आदमी बने रहेंगे

इस 42 से 48 डिग्री तापमान में सड़कें जल रहीं. गर्म हवा और लूह से हाल बेहाल है.
वहीं कुछ लोग  हैं जो बिना धूप-छाँव की परवाह किये बिना सड़क पर अपने काम में लगे हैं. धूप में जल रहे हैं. कन्धे पर फटा गमछा. और पैरों में टूटी चप्पल पहने  धीरे से पूछ रहे. “कहाँ चलना है भइया. फन मॉल.”?
आइये तीस रुपया ही दिजियेगा।”

इसी बीच कोई आईफोन धारी आता है अपने ब्युटीफुल गरलफ्रेंड के साथ. और अकड़ के कहता है. “अरे..हम कुछ दिन पहले आये थे तब बीस रुपया दिए थे बे. कइसे तीस रुपया होगा”
चलो पच्चीस लेना”
गर्लफ्रेंड मुस्कराती है .मानों उनके ब्वायफ़्रेंड जी ने 5 रुपया नहीं 5 करोड़ डूबने से बचा लिया हो. वो हाथ पकड़ के रिक्शे पर बैठतीं हैं. और बहुत ही प्राउड फील करती हैं.

यही ब्वायफ़्रेंड जी जब केएफसी ,मैकडोनाल्ड और पिज़्ज़ा हट में उसी गर्लफ्रेंड के साथ कोल्ड काफी पीने जाते हैं. तो बैरा को 50 रुपया एक्स्ट्रा देकर चले  आते हैं.
वही गर्लफ्रेंड जी अपने बवायफ्रेंड जी की इस उदारता पर कुश हो जातीं हैं. वाह. कितना इंटेलिजेंट हैं न.

इस गर्मी में कई बार ये सब सोचकर मैं असहिष्णु होने लगता हूँ.
आदमी कितनी बारीक चीजें इग्नोर कर देता है. जाहिर सी बात है की जो बैरा को पचास दे सकता है. वो किसी गरीब बुजुर्ग रिक्शे  वाले को दस रुपया अधिक भी तो दे सकता है.
लेकिन सामन्यतया आदमी का स्वभाव इतना लचीला नहीं हो पाता.
क्योंकि अपने आप को दूसरे की जगह रखकर किसी चीज को देखने की कला हमें कभी नहीँ सिखाई गयी।
और आज संवेदनशीलता के दौर में ये सब सोचने की फुर्सत किसे है.

कई बातें हैं. बस यही कहूंगा की. इस प्रचण्ड गर्मी में रिक्शे वालों से ज्यादा मोल भाव मत करिये.
जब बैरा को पचास देने से आप गरीब नहीं होते तो रिक्शे वाले को पांच रुपया अधिक देने से आप गरीब नहीं हो जायेंगे.
हो सकता है. आपके इस पैसे से वो आज अपनी चार साल की बेटी के लिये चॉकलेट लेकर जाए. तब बाप-बेटी की ख़ुशी देखने लायक होगी न। कल्पना करियेगा जरा।

जरा सडक़ों पर आइए. एक दिन पेप्सी कोक मत पीजिये. मत जाइये.केएफसी,मैकडोनाल्ड और पिज्जा हट।
देखिये न कोई गाजीपुर का लल्लन,कोई बलिया का बीजू, कोई गोंडा का संकता. अपना घर-दुआर छोड़ कर लखनऊ में बेल का शरबत, दही की लस्सी,आम का पन्ना, और गने का जूस बेच रहा है. एक सेल्फ़ी उस लस्सी वाले के साथ भी तो लिजिये।
जरा झांकिए इनकी आँखों में एक बार गौर से.
इसके पीछे. इनकी माँ बहन बेटा बेटी की हजारों उम्मीदें आपको उम्मीद से घूरती  मिलेंगी.
केएफसी कोक और मैकडोनाल्ड का पैसा पता नहीं कहाँ जाता होगा. लेकिन आपके इस बीस रुपया के लस्सी से.और दस रुपया के बेल के शरबत से .5 रुपये के नींबू पानी से किसी रमेश का तीन साल का बबुवा इस साल पहली बार स्कूल जाएगा.
किसी गजोधर के बहन की अगले लगन में शादी होगी.
क्या है की हम आज तक लेने का ही सुख जान पाएं हैं. खाने का ही सुख महसूस कर पाये हैं.
लेकिन इतना जानिये की लेने से ज्यादा देने में आनंद है।
खाने से ज्यादा खिलाने में सुख है।
इतनी गर्मी के इतनी सी संवेदना बची रहे.
हम आदमी बने रहेंगे।

 

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हम नफरतों के आदी होते जा रहे

ओवैसी ने कहा था कि “मेरी गर्दन पर कोई छूरी रख दे तो भी मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगा”
बड़ी बवाल मचा था ..तुरन्त  बोलने और बोलवाने के बीच जंग शुरू हो गयी..
विपक्ष को एक बड़ा मुद्दा मिला.बुद्धिजीवियों को वैचारिक लाठी भांजने का एक हथियार..मीडिया को टीआरपी मसाला..

लेकिन इन सब शोर के बीच एक आवाज दब गयी.जो बनारस की उस मुस्लिम महिला  नाजनीन अंसारी की आवाज थी जिसने ललकार कर  कहा था..

“मेरी गर्दन पर कोई तोप रख दे तो भी मैं लाखो बार भारत माता की जय बोलूंगी”

अफसोस की ये समाचार मुद्दा न बना..न ही बनेगा..
जानते हैं क्यों?…क्योंकि मीडिया  नफरत बेचने की आदी हो गयी है..
धीरे-धीरे हम नफरत देखने सुनने के आदि होते जा रहे हैं.. वरना देश की बर्बादी का नारा लगाने वाले आज हीरो न बन जाते..

हमें कहीं थोड़ा बहुत प्रेम भी दिखता है तो उस पर सन्देह होने लगता है..दोष हमारा नहीं..हम आज विकट समय में जी रहें हैं.
नफरतों का बाजार सजा है.

अगर इसी महिला ने चिल्लाकर कहा होता   “मेरी गर्दन पर कोई तोप रख दे तो भी मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगी..”
तब आप देखते..कैसे लोग दौड़े चले जा रहें हैं इनका साक्षात्कार करने के लिये..बरखा राजदीप जैसे लोग इनको कन्धे पर झूला रहें हैं.
लाइव इंटरव्यू दिखाया जा रहा है..बड़े बड़े सम्पादकीय लिखे जा रहे हैं”

लेकिन नहीं इस महिला को इस चीज का कभी गम न रहा..न ही फेमस होने और हीरो बनने की कामना जगी.
इन पर तमाम फतवे भी जारी किये गये..मुल्ला जी लोग इनको धमकी भी दे चुके हैं..अभी भी जब तब  देतें ही रहतें हैं…
इसके बावजूद भी वो लगीं हैं..समाज को जोड़ने में. उस गंगा जमुनी तहजीब को कायम रखने में जो अब सिर्फ सुनने में ही अच्छी लगती है.

2006 में जब बनारस बम के धमाको से दहल उठा था..तब इसी  महिला ने  अपने 51 साथी महिलावो के साथ संकटमोचन मन्दिर में जाकर सुंदर काण्ड का पाठ किया था..
इन्होंने हनुमान चालीसा,मानस समेत कई हिन्दू धार्मिक  ग्रन्थों का उर्दू में अनुवाद किया है..
हर साल रामनवमी बड़े धूम धाम से मनाती हैं..
खुद राम जी के लिये कई भजन भी लिखा है.
नमाज भी जरूर पढ़ती हैं.रोजा रखकर ईद भी मनाती हैं.
क्योंकि इनका मानना है कि इनका  इस्लाम इतना कमजोर नहीं कि राम जी की आरती दिखाने..प्रसाद खाने मन्दिर,गुरुद्वारा और चर्च जाने से खतरे में पड़ जाएगा।

इन्होंने  बनारस की तमाम गरीब मुस्लिम महिलावों के लिये जमीनी स्तर पर बड़ा ही अद्भुत काम किया है.
रक्षाबंधन  के समय इन्होंने प्रधानमंत्री मोदी जी को  अपने हाथ से बनाई राखी भी भेजा था..

अभी राष्ट्रपति ने जी ने देश की जिन सौ महिलावों को सम्मानित किया उनमें एक नाम इनका भी था।

ये आइना हैं उन सभी मुसलमानों के लिये. सेक्यूलरिज्म का ढोंग करने वाले तमाम मुस्लिम  बुद्धिजिवीयों  के लिये जो धीरे-धीरे मोदी और आरएसएस के अंध विरोध में आज हिंदू और हिन्दुस्तान के विरोधी होते जा रहे हैं.
हमारा दुर्भाग्य है कि हम ओवैसी जैसों को जानतें हैं लेकिन नाजनीन अंसारी को नहीं जानते.

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